Friday 29 July 2016

मूसाफिर

दर - ब - दर भटकती रहती हॅू,
इस मूसाफिर को कही ठिकाना नहीं मिलता!
तेरी चौख़ट पर कितनी मरतबा मैं आई,
सिवाय फटकार के कुछ नहीं मिलता!
सागर में भी न जाने कितनी बुंदे हैं,
लहरे मिलती हैं साहिल नहीं मिलता!
यह मज्ञमा भी तो तेरा अपना हैं,
मिलते हैं दुश्मन मुझे दोस्त नहीं मिलता!
तुमने कभी पुछा नहीं वरना बताती,
लगती हैं जमाने की ठोकर, मरहम नहीं मिलता!
मैं नहीं काबिल घर की सज़ावट के,
कहते हैं सब, कोई ऐहतेजाज़ नहीं मिलता!
मैं तो बोझ हूँ तुमपे हर वक़्त,
मिला हैं अच्छा दोस्त, तु नहीं मिलता!
अब तो तुझे पाना भी नामुमकीन हैं,
सब कुछ मिलता हैं इस दुनिया मे जिसे चाहो वो नहीं मिलता!
तुम खुश रहो मुझे भी भूल जाओ,
तुमको मिलेगा विऱाना मुझसे रंग नहीं मिलता!
मैं तो हूँ बंजारा मुझे तनहा हैं जीना,
मिलती हैं मंजिल मुझे घर नहीं मिलता!
तुम तो मसरूफ हो अपनी जिंदगी में,
मेरे लिये हीं क्यों वक़्त नहीं मिलता!

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