रूखसत-ए-वक्त है अब, होगी अगली मुलाकात,
एक झलक के लिए चाहते उसके इर्द-गिर्द घुमती है,
आँखों से करता है बातें, जुबां से रहता ख़ामोश ,
वोह जब सामने आए तो मेरी पलकें झुक जाती है,
वस्ल की शाम या खुदा अब हो जाए मुकर्रर,
इस इंतजार में मेरी हर शाम तन्हा गुजर जाती है!
एक झलक के लिए चाहते उसके इर्द-गिर्द घुमती है,
आँखों से करता है बातें, जुबां से रहता ख़ामोश ,
वोह जब सामने आए तो मेरी पलकें झुक जाती है,
वस्ल की शाम या खुदा अब हो जाए मुकर्रर,
इस इंतजार में मेरी हर शाम तन्हा गुजर जाती है!